Wednesday 8 May 2013

महतारी

                            

महतारी    हर   महतारी   ए   देवी -  देवता   मन    ले   बड़े
माँ  के  जनम  ह  पर बर  होथे ओकर  त्याग हे सब  ले बड़े |

माँ  पहिली  गुरु  ए  मनखे  के  ओही   सिखोथे  सत  आचार
व्यक्तित्व  मनुज  के  वोही  बनाथे  माँ  ए  डोंगा  के  पतवार |

महतारी   के  पेट  म   पलथे   नव   महीना   ले   सब   संतान
सफल  नागरिक  वोही  बनाथे  वो  हर  ए  सब  गुन  के  खान |

महतारी   बिन   राष्ट्र   प्रगति   हर   धोखा   ए   मृगतृष्णा   ए
जियत   तिरिथ   ए   माँ  भुइयाँ  के  माँ  के  भाखा   देशना ए |

लइका   के  पालन  -  पोषण   बर  तप   करथे   महतारी   हर
लइका  ल  सुक्खा म  सुताथे   ओद्दा   म  सुतथे  लइका   बऱ |

अपन   तन   के   रस  ल    पियाथे   संजीवन   ए  लइका   बर
अपन    लहू  ले   ओला   पोंसथे  सब   ले  आघू   अतका   बर |

वोहर  घुटकथे  हमर  अशुभ  ल  माँ  ए शिव  भगवान   सरिख
सब जानत हे तभो ले चुप-चुप रहिथे बिल्कुल अनजान सरिख |

अधिकार  शब्द   ल  माँ  नइ जानय  त्याग  तपस्या जीवन  ए
अपन - अपन  मुँहरन  ल  देखव   माँ   लइका   बर   दरपन  ए |

माँ   के  गोड़  म   तिरिथ  बरत   हे   मंत्र   सरिख  ओकर   बानी
माँ  महिमा  मानव  मनखे   मन  जनम   गँवा   झन   रे   प्रानी |

                              शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]  

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