महतारी हर महतारी ए देवी - देवता मन ले बड़े
माँ के जनम ह पर बर होथे ओकर त्याग हे सब ले बड़े |
माँ पहिली गुरु ए मनखे के ओही सिखोथे सत आचार
व्यक्तित्व मनुज के वोही बनाथे माँ ए डोंगा के पतवार |
महतारी के पेट म पलथे नव महीना ले सब संतान
सफल नागरिक वोही बनाथे वो हर ए सब गुन के खान |
महतारी बिन राष्ट्र प्रगति हर धोखा ए मृगतृष्णा ए
जियत तिरिथ ए माँ भुइयाँ के माँ के भाखा देशना ए |
लइका के पालन - पोषण बर तप करथे महतारी हर
लइका ल सुक्खा म सुताथे ओद्दा म सुतथे लइका बऱ |
अपन तन के रस ल पियाथे संजीवन ए लइका बर
अपन लहू ले ओला पोंसथे सब ले आघू अतका बर |
वोहर घुटकथे हमर अशुभ ल माँ ए शिव भगवान सरिख
सब जानत हे तभो ले चुप-चुप रहिथे बिल्कुल अनजान सरिख |
अधिकार शब्द ल माँ नइ जानय त्याग तपस्या जीवन ए
अपन - अपन मुँहरन ल देखव माँ लइका बर दरपन ए |
माँ के गोड़ म तिरिथ बरत हे मंत्र सरिख ओकर बानी
माँ महिमा मानव मनखे मन जनम गँवा झन रे प्रानी |
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